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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


उन्माद (कहानी) : मुंशी प्रेमचंद

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रात के नौ बजे थे। मनहर लंदन के एक फैशनेबल रेस्ट्रां में बना-ठना बैठा था। उसका रंग-रूप और ठाठ-बाट देखकर सहसा कोई नहीं कह सकता था कि वह अंग्रेज नहीं है। लंदन ने भी उसके सौभाग्य ने उसका साथ दिया था। उसने चोरी के कई गहरे मुआमलों का पता लगा लिया था, इसलिये उसे धन और यश दोनो ही मिल रहा था। वह अब यहां के भरतीय समाज का प्रमुख अंग बन गया था, जिसके आथित्य और सौजन्य की सभी सराहना करते थे। उसका लबो-लहजा भी अंग्रेजों से मिलता जुलता था। उसके सामने मेज के दूसरी ओर एक रमणी बैठी हुई उनकी बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी। उसके अंग-अंग से यौवन ट्पका पड़ता था। भारत के अदभुत वृत्तान्त सुनकर उसकी आंखे खुशी से चमक रही थीं। मनहर चिड़िया के सामने दाने बिखेर रहा था।
मनहर-विचित्र देश है जेनी, अत्यन्त विचित्र।पांच-पांच साल के दूल्हे तुम्हे भारत के सिवा कहीं देखने को नहीं मिलेंगे। लाल रंग के चमकदार कपड़े, सिर पर चमकता हुआ लम्बा टोप, चेहर पर फूलों का झालर्दार बुर्का, घोड़े पर सवार चले जा रहे हैं। दो आदमी दोनों तरफ़ से छतरी लगाये हुए हैं। हांथो में मेंहदी लगी हुयी है।
जेनी- मेंहदी क्यों लगाते हैं?
मनहर- जिससे हांथ लाल हो जायें। पैरों मीं भी रंग भरा जाता है। उंगलियों के नाखून लाल रंग दिये जाते हैं। वह दृष्य देखते ही बनता है।
जेनी-यह तो दिल में सनसनी पैदा करने वाला दृष्य होगा। दुल्हन भी इसी तरह सजायी जाती होगी?
मनहर-इससे कई गुनी अधिक। सिर से पांव तक सोने चांदी के गहनों से लदी हुयी। ऐसा कोई अंग नहीं जिसमें दो-चार जेवर न हों।
जेनी-तुम्हारी शादी भी इसी तरह हुयी होगी। तुम्हे तो बड़ा आनन्द आया होगा?
मनहर-हां, वही आनन्द आया था जो तुम्हे मेरी-गोराउण्ड पर चढ़ने में आता है। अच्छी-अच्छी चीजे खाने को मिलती हैं, अच्छे कपड़े पहनने को मिलते हैं। खूब नाच तमाशे देखता था और शहनाइयों का गाना सुनता था। मजा तो तब आता है जब दुलहन अपने घर से बिदा होती है। सारे घर में कुहराम मच जाता है। दुलहन हर एक से लिपट-लिपट कर रोती है, जैसे मातम कर रही हो।
जेनी-दुलहन रोती क्यों है?
मनहर-रोने का रिवाज चला आता है। हालांकि सभी लोग जानते हैं कि वह हमेशा के लिये नही जा रही है, फिर भी सारा घर इस तरह फूट फूट कर रोता है, मानो वह काले पानी भेजी जा रही हो।
जेनी-मैं तो इस तमाशे पर खूब हंसू।
मनहर-हंसने की बात ही है।
जेनी-तुम्हारीबीवी भी रोयी होगी?
मनहर-अजी कुछ न पूंछो, पछाड़े खा रही थी, मानो मैं उसका गला घॊंट दूंगा। मएरी पालकी से निकलकर भागी जाती थी, पर मैंने जोर से पकड़ कर अपनी बगल में बैठा लिया। तब मुझे दांत काटने दौड़ी।
मिस जेनी ने जोर का कहकहा मारा और हंसी के साथ लोट गयीं। बोलीं-हारिबल! हारिबल! क्या अब भी दांत काटती है?
मनहर-वह अब इस संसार में नहीं रही जेनी! मैं उससे खूब काम लेता था। मैं सोता था तो वो बदन में चम्पी लगाती थी, मेरे सिर में तेल डालती थी, पंखा झलती थी।
जेनी-मुझे तो विश्वास नहीं आता। बिल्कुल मूर्ख थी!
मनहर-कुछ न पूंछॊ।दिन को किसी के सामने मुझसे बोलती भी न थी, मगर मैं उसका पीछा करता रहता था।
जेनी-ओ!नाटी ब्वाय! तुम बड़े शरीफ हो। थी तो रूपवती?
मनहर-हां उसका मुंह तुम्हारे तलवों जैसा था।
जेनी-नान्सेन्स! तुम ऐसी औरत के पीछे कभी न दौड़ते।
मनहर-उस वक्त मैं भी मूर्ख था जेनी।
जेनी-ऐसी मूर्ख लड़की से तुमने विवाह क्यों किया?
मनहर-विवाह न करता तो मां बाप जहर खा लेते।
जेनी-वह तुम्हे प्यार कैसे करने लगी?
मनहर-और करती क्या? मेरे सिवा दूसरा था ही कौन? घर से बाहर न निकलने पाति थी, मगर प्यार हममें से किसी को न था। वह मेरी आत्मा को और हृदय को सन्तुष्ट न कर सकती थी ,जेनी! मुझे उन दिनों की याद आती है, तो ऐसा मालूम होता है कि कोई भयंकर स्वप्न था। उफ! अगर वह स्त्री आज जीवित होती, तो मैं किसी अंधेरे दफ्तर में बैठा कलम घिस रहा होता। इस देश में आकर मुझे यथार्त ज्ञान हुआ कि संसार में स्त्री का क्या स्थान है, उसका क्या दायित्व है और जीवन उसके कारण कितना आनन्दप्रद हो जाता है। और जिस दिन तुम्हारे दर्शन हुये, वह तो मेरी जिन्दगी का सबसे मुबारक दिन था। याद है तुम्हे वो दिन? तुम्हारी वह सूरत मेरी आंखों में अब भी फिर रही है।
जेनी-अब मैं चली जाऊंगी। तुम मेरी खुशामद करने लगे।

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